चलते-चलते
अक्षय कटोच (Akshay Katoch)
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थक गये हैं कदम तेरे चलते-चलते,
पल भर को रुक के देख राही,
कहाँ से चले, आ पहुँचे कहाँ, चलते-चलते।
जब तक थी आस मिलने की मंजिल,
काँटे राह के काँटे न थे,
पाँव के छालों से अब होता है एहसास,
बेवफा है वो, न मिलेगी कभी चलते-चलते।
झुकाए हुए सर को कहाँ जाते हो गुमसुम,
बहारें तो गईं, न आने को फिर से चलते-चलते।
उजड़ गया जो गुलशन में रहकर,
उस फूल को सवा रोती नहीं,
छुपा ले जमाने से टूटे दिल को अपने,
कहीं जाए न बिखर, पाकर वही नजर चलते-चलते।
blog jagat men swagat hai.
थक गये हैं कदम तेरे चलते-चलते,
पल भर को रुक के देख राही,
कहाँ से चले, आ पहुँचे कहाँ, चलते-चलते।
सुन्दर पोस्ट के लिए बधाई!
gazab BHAISAHAB, chaliye ye sundar kaam kiya.
sundar.narayan narayan
बहुत सुन्दर रचना । स्वागत है ।
गुलमोहर का फूल
स्वागत है
सुन्दर पोस्ट के लिए बधाई!
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